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पर्यावरणीय चुनौतियाँ

मानव के जीवन के लिए स्वस्थ शरीर और स्वास्थ्यवर्धक परिवेश की महती आवश्यकता है | हमारा पर्यावरण हमारे जीवन के लिए दशाएं देता है और इसको स्वस्थ रखना भी हमारा कर्त्तव्य है | हमारी संस्कृति में प्रकृति को माता का दर्जा दिया गया है क्यूंकि ये हमारा भरण पोषण करती है और हमारे सुख शांति के लिए नवीन सुन्दर दृश्य प्रदान करती है | प्राचीन काल से ही सभी सभ्यताओं में प्रकृति की प्रति मानवीय कर्त्तव्य का जिक्र किया गया है चाहे वह मेसोपोटामिया हो , हड़प्पा सभ्यता हो या फिर मिस्र की प्रच्चीन सभ्यता सभी में मनुष्य और प्रकृति के मध्य संबंधों का चिंत्रण मिलता है | आधुनिक मनुष्य अपने विज्ञान के कारण प्रकृति से दूर हुआ है और प्रगति के नाम पर उसने पर्यावरण को हानि पहुंचाई है | मनुष्य ने जैसे जैसे तरक्की की वैसे वैसे उसने अपने बल पर प्रकृति को विजित करना शुरू किया यह भूलकर की इस प्रक्रिया में वह अपने लिए ही संकटों को बुला रहा है | मनुष्य ने अपने अंधाधुन्द दोहन के छेत्र भी निर्धारति कर लिए और जब उसकी लालसा पूरी न हुई तो उसने युद्ध आदि के सहारे से दूसरों के छेत्रों पर कब्ज़ा शुरू कर दिया|राजनीति क

दुनिया में गंभीर अज्ञानता और सहमत मूर्खता से ज्यादा कुछ भी खतरनाक नहीं है।

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                                       "बुद्धिमत्ता के दंभ  में हम कितने अनभिज्ञ हो जाते हैं  |"            मैरी शेली   ने अपनी कालजयी रचना " फ्रंकेंस्तीन" में उपर्युक्त वाक्य के द्वारा मानवता की एक जटिल पहेली को सामने रखा है | जिस तरह से इस उपन्यास में "फ्रंकेंस्तीन" द्वारा बनाया गया दैत्य उसके ही सगे सम्बन्धियों को मार देता  है ठीक वैसे ही आज मानवता अपने लिए ही संकटों को निमंत्रण देती नजर आ रही है | फ्रंकेंस्तीन को शायद इस बात का आभास नही था की दैत्य उसके परिवार को मार देगा पर मनुष्यों को अपने ऊपर आने वाले संकटों का एहसास है फिर भी वह इस ओर अनभिज्ञ बना हुआ है|  फ्रंकेंस्तीन उपन्यास पर आधारित एक फिल्म का दृश्य (साभार : दा गार्जियन)             प्रकृति ने जब मनुष्य का निर्माण किया तो उसे मास्तिष्क का उपहार दिया ताकि वह अपने जीवन को अधिक परिष्कृत कर सके और इस धरा को और भी सुन्दर बना सके | मनुष्य ने ज्ञान विज्ञान की सहायता से प्रकृति के भेद को जाना और नित तरक्की के पथ पर आगे बढ़ता रहा | मनुष्य ने गंभीर व्याधियों का समाधान खोजा, जीवन को सरल बन

यश क्षणिक होता है, किंतु अंधकार चिरस्थायी

"ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है  समुंदरों ही के लहजे में बात करता है  खुली छतों के दिए कब के बुझ गए होते  कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है "                                                            - वसीम बरेलवी              जिंदगी की दौड़ में आज हम सब बेहिसाब भाग रहे हैं , कुछ तो अपने लक्ष्यों को पाने के लिए और कुछ तो बस होड़ की होड़ में ही रहने को दौड़ते हैं | जरा रुकिए , तलाशिये की इस भाग दौड़ में जो खो गया वो क्या था ?  कुछ तमगे पाने की ललक में , कुछ कर गुजरने की चहक में  भूल गए हम की जिंदगी कुछ और भी है | जिंदगी केवल कुछ कर गुजरने का सिलसिला नहीं है बल्कि जो कुछ किया उससे हमने क्या दिया इसका जवाब भी खोजना पड़ेगा |             किसी ने खूब ही कहा है की " तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो , हम ही हम हैं तो क्या हम हैं "| अपने स्वार्थ के लिए तो जानवर भी दिन रात लगे रहते हैं पर इंसान वही है जो औरों की भलाई में भी अपना कर्त्तव्य खोज लेता है | अगर हमें अपनी जिंदगी में कोई मूल मंत्र बनाना चाहिए तो केवल यह की " यश के लिए नहीं बल्कि एक अच्छा संसार बना

हम वैसा ही बनते हैं जैसे हमारे विचार होते हैं

"हमको मन की शक्ति देना , मन विजय करें  दूसरों की जय के पहले खुद को जय करें " इस मधुर गीत के द्वारा दिया गया सन्देश जीवन का आधार है , इसका आशय है की यदि हम अपने मन को जीत लेते हैं तो हम समस्त संसार को जीत सकते हैं | हमारा मन बनता है हमारे विचारों से और विचार ही हमारे जीवन और कर्म की दिशा तय करते हैं | विचारों के द्वारा ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है और एक सही व्यक्तित्व ही जीवन को ऊर्जा व गति प्रदान करता है | इतिहास ऐसे अनगिनत उदाहरणों से परिपूर्ण हैं जहाँ उपर्युक्त सन्देश जीवंत रूप में दिखता है | कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ और उसने संसार भर में बौद्ध धर्म द्वारा शांति का सन्देश फैलाया | न उसका शरीर बदला न परिवेश , केवल विचार परिवर्तन द्वारा ही वह चंड अशोक से महान अशोक बन पाया |  अकबर ने अपने 'दीन-ए-इलाही' धर्म द्वारा समाज को नए विचार देने का प्रयास किया जिससे धार्मिक सहिष्णुता बनी रहे | बापू ने भी सत्य अहिंसा का नारा दिया , उन्होंने इसे केवल एक कारवाई या योजना की तरह नहीं अपनाया बल्कि इसे एक विचार की तरह आत्मसात किया | उन

बिग डाटा युग : डेटा नया इंधन है तथा इतिहास इसका सबसे पुराना बैंक

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"सूचना २१वीं सदी की इंधन है तथा डाटा एनालिसिस दहन इंजन "                                                                            - पीटर सोंदेर्गार्ड  वर्तमान युग को यदि तकनीकी युग कहा जाये तो इसे अतिश्योक्ति नहीं कहेंगे | प्रस्तुत युग मानवीय कलापों से आगे बढ़कर मशीनी कार्यक्रमों द्वारा चालित हो रहा है | प्रत्येक दिवस के साथ ही नयी तकनीकी युग को नयी दिशा देती है तथा मानवीय प्रगति के नए आयाम खोलती है | इसी क्रम में बिग डाटा प्रणाली को भी रखा जा सकता है जिसने अदृश्य रूप में ही मानव समाज को नयी गति दे दी है |  बिग डाटा प्रणाली के प्रभावों को  समझने के लिए इसकी मूलभूत समझ होना जरुरी है |  बिग डाटा प्रणाली को हम सरल शब्दों में ऐसी डाटाविश्लेषण प्रणाली के रूप में समझ सकते हैं जहाँ डेटा सेट्स को छोटा  या परिमार्जित नहीं किये बगैर सम्पूर्ण डाटा के प्रयोग से निष्कर्ष निकला जाता है | पुराणी सांख्यिकी प्रणालियों में जहाँ छोटे छोटे डेटा सेट्स से परिणाम अनुमानित किये जाते थे वहीँ इस प्रणाली में वृहतर डेटा का प्रोयग कर सटीक अनुमान निकाले जा सकते हैं |  बिग डेटा प्रणाली

क्या युवाओं को राजनीति को एक वृत्ति (करियर) के रूप में देखना चाहिए

" लगभग  हर  एक  चीज  जो  महान  है  युवाओं  द्वारा  की  गयी  है| ."                                                                            - बेंजामिन  डिस्रेलि                    पूर्व ब्रितानी प्रधानमंत्री के उपर्युक्त विचार दर्शाते हैं की युवावस्था वह समय है जब व्यक्ति के पास महान परिवर्तनों को लाने की शक्ति होती है | युवा उस वायु के सामान है जो अपने वेग से समाज , राजनीति  और दुनिया को बदलने की क्षमता रखती है | युवाओं में वह ओज होता है जो उन्हें नए विचारों के प्रति सजग रखता है और उनके पास अतीत से सीखने की काबिलियत भी होती है |  जब युवा राजनीति में आते हैं तो नव परिवर्तन की धारा बहती है और नयी सोच का निर्माण होता है |                     इतिहास गवाह है जब जब कोई युवा पूरे मनोवेग से किसी संकल्प प्राप्ति हेतु निकला तो उसका रास्ता कोई नहीं रोक पाया | लघभग २३०० वर्ष पहले दुनिया ने युवा सिकंदर की अद्भुत विजय को देखा  जो मकदूनिया से चलकर हिन्दुकुश पर्वत को  लांघ गया था | उसी के समकालीन कौटिल्य शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य ने शक्तिशाली मगध शासक 'घनानंद' को हरा द

श्रम बल में महिलाओं का कम और स्थिर भाग : एक विसंगति या आर्थिक सुधारों का परिणाम

                                  "किसी भी राष्ट्र की उन्नति या अवनति उसकी                                   स्त्रियों की उन्नति या अवनति पर निर्भर होती है | "                                                                                              - अरस्तु        अरस्तु का यह कथन दिखाता है की देश की महिलाएं देश के लिए क्या मायने रखती हैं | महिलाएं किसी भी देश की नींव होती है जिनपर परिवार से लेकर समाज तक की वृहत जिम्मेदारी होती है | महिलाएं बेटी , बहन, पत्नी और माँ के रूप में जहाँ पुरुषों को सहयोग देती हैं वहीँ वह समाज में नव पीढ़ी की रचनाकार और उसके मूल्यों  की पोषिका भी होती हैं | आधुनिक भारत में भी महिला सशक्त रूप में उभर कर सामने आ रही है , आज महिलाओं की भागीदारी हर छेत्रों में देखी जा सकती है | महिलाएं घर गृहस्थी के साथ साथ व्यावसायिक छेत्रों में भी पुरुषों क साथ कंधे से कन्धा मिला आगे बढ़ रही है  |                    महिलाओं की यह उन्नति लेकिन कुछ हद में ही हुई है , अभी  महिलाओं का संस्थात्मक रूप में विकास नहीं हुआ है जो की हमारे देश के लिए चिंता का